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पप्पू अभी-अभी मंदिर से शादी करके अपनी नई दुल्हन को लेकर राजनीतिक नेता जग्गू दादा के पास आया और पैर छूकर बोला - “गुरु, इसे ज़रा आशीर्वाद दे दीजिए।”
जग्गू दादा बोला - “मैं कोई साधु-मुनि या बाबाजी नहीं हूँ जो आशीर्वाद दूँ। मैं तो नेता हूँ... मैं तो बस ‘उद्घाटन’ करता हूँ।”
बस और क्या? तब से पप्पू अपनी बीवी को लेकर जगह-जगह भागता फिर रहा है।
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